दिल में शो'ला सा उठा हो जैसे तूर लौ दे के जला हो जैसे वो मिरे पास से हो कर गुज़रे सुब्ह-दम बाद-ए-सबा हो जैसे अब तो रोके नहीं रुकते आँसू आबला फूट गया हो जैसे उन की ख़ामोश निगाहों से मुझे कोई पैग़ाम मिला हो जैसे बे-सबब क्यों मिरी आँखें नम हैं उस ने फिर याद किया हो जैसे ग़ुंचे गुलशन में हँसे ख़ूब हँसे मेरा अफ़्साना सुना हो जैसे सो गया छाँव में ज़ुल्फ़ों की 'तरब' कोई रहगीर थका हो जैसे