यही सूरत रही तो गुज़र ली ज़िंदगी तो है दुनिया जब ये दुनिया रहेगी कुछ कमी तो ऐ फ़ुर्सत इतनी फ़ुर्सत मिलूँ ख़ुद से कभी तो मुझे बे-ख़्वाब कर दे कि सो लूँ दो घड़ी तो बस अब इक क़हक़हा हूँ कहीं खो दी हँसी तो लहू आँसू कि पानी है पलकों तक नमी तो ये मैं ही चीख़ उट्ठा हूँ आख़िर आदमी तो मैं ख़ुद में लौट आया थी अंदर रौशनी तो फ़क़ीरी बेचता हूँ गँवा दी सरवरी तो ज़ुहल हो या अतारिद हमीं थे मुश्तरी तो वही दीवानगी है वही दीवानगी तो हमारी आस्तीं में रहे हैं आप भी तो अब इतनी हड़बड़ी क्यों ले गठरी बाँध ली तो किधर निकली जवानी अभी तक थी अभी तो