दिल में जो तसव्वुर है तिरी ज़ुल्फ़-ए-रसा का समझा हूँ इसे मैं तो अमल रद्द-ए-बला का दुनिया में कोई मुझ सा गुनहगार न होगा मैं ख़ाक का पुतला नहीं पुतला हूँ ख़ता का जन्नत की है उम्मीद तो दोज़ख़ का है खटका दुश्वार है मैदान बहुत बीम-ओ-रजा का हूरान-ए-जिनाँ ने हमें आँखों पे बिठाया देखे तो कोई मर्तबा तेरे शोहदा का साग़र की तमन्ना है न शीशे की ज़रूरत मस्ताना हूँ तेरी निगह-ए-होश-रुबा का अनवार-ए-मोहम्मद के हैं अनवार-ए-इलाही दीदार मोहम्मद का है दीदार ख़ुदा का इक राज़ है ये भी कि तिरी तेग़ का पानी चश्मा है शहीदों के लिए आब-ए-बक़ा का अल्लाह के महबूब की नज़रों में है ए'जाज़ सीने में जो अल्लाह का घर था उसे ताका बे-आई मरूँ तुम पे कि मरना है मुक़द्दर क्यूँ मुफ़्त में एहसान उठाऊँ मैं क़ज़ा का मरक़द में भी उम्मत को न भूले शह-ए-वाला अल्लाह-ग़नी ध्यान है कितना ग़ुरबा का रौज़े पे क्या अर्ज़ मिरा हाल-ए-परेशाँ एहसान न भूलूँगा कभी बाद-ए-सबा का जिस ख़ाक पे आशिक़ ने किए सज्दों पे सज्दे ख़ाका था वहाँ आप के नक़्श-ए-कफ़-ए-पा का अर्बाब-ए-करम फूलते-फलते हैं हमेशा मिलता है समर उन को ग़रीबों की दुआ का 'रासिख़' की ज़बाँ पर हो दम-ए-मर्ग ये मिस्रा महबूब की उम्मत में हूँ बंदा हूँ ख़ुदा का