दिल में वफ़ा की है तलब लब पे सवाल भी नहीं हम हैं हिसार-ए-दर्द में उस को ख़याल भी नहीं वो जो अना परस्त है मैं भी वफ़ा परस्त हूँ उस की मिसाल भी नहीं मेरी मिसाल भी नहीं अहद-ए-विसाल-ए-यार की तुझ में निहाँ हैं धड़कनें मौजा-ए-ख़ून-ए-एहतियात ख़ुद को उछाल भी नहीं तुम को ज़बान दे चुके दिल का जहान दे चुके अहद-ए-वफ़ा को तोड़ दें अपनी मजाल भी नहीं उस से कहो कि दो घड़ी हम से वो आ मिले कभी माना ये है मुहाल पर इतना मुहाल भी नहीं