दिल मिरा नंग रहा करता है रंग बे-रंग रहा करता है हर घड़ी मुझ से वो तुर्क-ए-खूँ-रेज़ बरसर-ए-जंग रहा करता है तुझ से पूछें तो ये कहना क़ासिद ज़ीस्त से तंग रहा करता है अश्क-बारी से मिरा दीदा-ए-तर साहिल-ए-गंग रहा करता है देख कर तुझ को ब-चश्म-ए-हैरत आइना दंग रहा करता है ग़ैर हम-पल्ला हो मेरा क्या ज़िक्र मिस्ल-ए-पासंग रहा करता है ग़ैर से ग़ैर हुए सूरत-ए-बज़्म और ही रंग रहा करता है दोस्त हो या कि अदू हो 'साबिर' सब से यक-रंग रहा करता है