हर आन उस सितम-ईजाद की अदा है और कि दिन को और है शब को वो दिलरुबा है और अबस ये ख़ुल्द की तर्ग़ीब मुझ को है वाइज़ ख़ुदा-परस्ती से अपना तो मुद्दआ' है और मिले जो हूर का बोसा तो मैं न लूँ वाइज़ कि चूमने में किसी के क़दम मज़ा है और ये दम-ब-दम है फ़ुज़ूँ शौक़-ए-तालिब-ए-दीदार जवाब-ए-साफ़ पे भी अर्ज़-ए-इल्तिजा है और ये हिम्मत-ए-दिल-ए-आशिक़ है दाद के क़ाबिल तुम्हारे जौर पे भी माइल-ए-वफ़ा है और पिला दिए मुझे साक़ी ने ख़ुम पे ख़ुम 'साबिर' मगर वो तिश्ना-दहन हूँ मिरी सदा है और