दिल ने ऐसा कभी न सोचा था जो भी देखा था एक धोका था मुझ को उर्यानियों का ग़म क्यों था जब कि सारा हुजूम नंगा था अंधे ग़ारों की सम्त भेज दिया मैं ने रस्ता किसी से पूछा था ज़िंदगी हुस्न काएनात हसीं ख़्वाब आँखों ने एक देखा था किस लिए दिल की धरती बंजर थी अब्र तो बे-हिसाब बरसा था रौशनी में न कुछ नज़र आए हाए सारा नगर ही अंधा था अब भी ज़ख़्मी हैं 'राज' पाँव मिरे जाने किस दश्त से मैं गुज़रा था