हर तरफ़ जब धुआँ धुआँ होगा क्या ख़बर फिर कोई कहाँ होगा गर नहीं ये जहान सपनों का क्या कोई दूसरा जहाँ होगा कट गए हैं सफ़र में कितने बरस क्या कहीं अपना भी मकाँ होगा ज़िंदगी जब न होगी तब ऐ दोस्त मैं कहाँ और तू कहाँ होगा ज़िंदगी से रहा जो बढ़ के अज़ीज़ ग़म वो लफ़्ज़ों में क्या बयाँ होगा दस्त-ए-वीरानी और तन्हाई बस-कि अपना यही निशाँ होगा पूछते हैं हसीं उसे शब-ओ-रोज़ 'राज' शायद अभी जवाँ होगा