दिल ने कहा था काफ़ी पहले इश्क़ का इक अफ़्साना लिख

दिल ने कहा था काफ़ी पहले इश्क़ का इक अफ़्साना लिख
बेगानों को अपना लिख दे अपनों को बेगाना लिख

पिछली रुतों में ख़ून की बारिश आँखों से जब बरसी थी
उस मंज़र का अक्स बना उस अक्स पे तू दीवाना लिख

जलती बुझती शम्अ' सहर तक जैसे तैसे चलती है
जो लम्हों में ख़ाक हुआ है लिख उस को परवाना लिख

दीवाने थे हम दोनों ही अपने में ख़ुश रहते थे
बीच में जिस ने नफ़रत बोई तू उस को फ़रज़ाना लिख

शे'र में अक्सर बातें सत्तर सत्तर मा'नी रखती हैं
पर्दों का ये झंझट छोड़ दे जुरअत कर रिंदाना लिख

इन आँखों ने कैसे कैसे मंज़र देखे दुनिया में
दुनिया-दारी करनी है तो आँखों को तह-ख़ाना लिख

'दानिश' तू ने ख़ूब लिखा है लफ़्ज़ों से भी खेला है
लेकिन जो बेदार हुए उन ज़ख़्मों का जुर्माना लिख


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