दिल-ओ-निगाह की सारी लताफ़तें भी गईं बसीरतों की तलब में बसारतें भी गईं गए दिनों की जहाँ तक अमानतें भी गईं नई रुतों की महकती बशारतें भी गईं समाअतों की फ़सीलें तो फाँद आई सदा कभी हिसार-ए-सदा तक समाअ'तें भी गईं मिरी कथा जो गई ता-दयार-ए-शीशा-ओ-संग लहूलुहान दिलों की हिकायतें भी गईं हरा-भरा मुझे रखती थीं जो हर इक रुत में वो शाख़-सार-ए-बदन की हरारतें भी गईं ग़ज़ल का सदियों पुराना लिबास यूँ बदला कि फ़िक्र-ओ-फ़न की मोहज़्ज़ब रिवायतें भी गईं ब-नाम-ए-दर्द मिरे दिल को जो मयस्सर थीं 'अतीक़' अब तो वो बे-नाम राहतें भी गईं