एक हंगामा-ए-फ़रियाद हर इक दिल से उठा कौन ये इश्क़ का मारा तिरी महफ़िल से उठा ग़ालिबन दिल की भी आवाज़ यही थी लेकिन ख़ैर से शोर-ए-क़यामत तिरी महफ़िल से उठा अपना भी अक्स-ए-तजल्ली था ब-अंदाज़-ए-जमाल और क्या अर्ज़ करूँ कौन मुक़ाबिल से उठा जुस्तुजू ख़त्म नज़र सुस्त तमन्ना महजूब कौन वामाँदा-क़दम पर्दा-ए-मंज़िल से उठा ख़ूगर-ए-सई-ए-मुकाफ़ात-ए-अमल बन के 'अतीक़' फ़ाएदा तू भी हर आसानी-ओ-मुश्किल से उठा