दिल सा पाबंद-ए-तहम्मुल दूसरा कोई नहीं टूटता रहता है शीशा और सदा कोई नहीं दिल की धड़कन रहनुमा है जुस्तुजू-ए-शौक़ में इक सदा कानों में आती है पता कोई नहीं कम ज़ियादा का गिला क्या अपना अपना ज़र्फ़ है बादा-ख़्वारो इस में साक़ी की ख़ता कोई नहीं सज्दा-गाह-ए-शौक़ था उन के क़दम का हर निशाँ देख लो नक़्श-ए-जबीं अब नक़्श-ए-पा कोई नहीं हर्फ़ जितने हुस्न के हैं उतने ही हैं इश्क़ के पल्ले दोनों देखिए कम और सिवा कोई नहीं ख़ामुशी है अहल-ए-ग़ैरत की तरीक़-ए-अर्ज़-ए-हाल ये न समझें आप दिल में मुद्दआ कोई नहीं डर नहीं 'नव्वाब' तूफ़ाँ-ख़ेज़ मौजों का मुझे साथ अपने है ख़ुदा गर ना-ख़ुदा कोई नहीं