इक हूक सी दिल में उठती है और अश्क-फ़िशानी होती है याद उन की सताने आती है जब रात सुहानी होती है ये सोज़िश-ए-ग़म ये दर्द-ओ-अलम इनआ'म-ए-मोहब्बत क्या कहिए इक दाग़ ही पर मौक़ूफ़ है क्या हर चीज़ निशानी होती है लहराता रहे गर शो'ला-ए-ग़म तो हुस्न का दामन बच न सके आदाब-ए-मोहब्बत की ख़ातिर ये आग भी पानी होती है थी सामने ही की बात मगर ये भेद अभी तक खुल न सका क्यों रोग लगा कर उल्फ़त का मग़्मूम जवानी होती है उस राह में ये अरबाब-ए-हवस साथ अहल-ए-वफ़ा का क्या देते जिस राह में सिर्फ़ अरमान नहीं हस्ती भी मिटानी होती है मय-ख़ाना-ए-उल्फ़त की बातें ना-अहल-ए-मोहब्बत क्या जानें मतवाली नज़र की गर्दिश भी दिलचस्प कहानी होती है 'नव्वाब' वो चाहे हुस्न की हो दौलत है बहर-सूरत दौलत दौलत को जहाँ में क़ियाम कहाँ ये आनी जानी होती है