दिल से किसी की याद भुलाने चला था मैं जलता हुआ चराग़ बुझाने चला था मैं शर्मिंदा हूँ ये कह के उलट दीजिए नक़ाब महशर से पहले हश्र उठाने चला था मैं या-रब जुनून-ए-इश्क़ ने पहुँचा दिया कहाँ काँटों को भी गले से लगाने चला था मैं क़िस्मत से ऐसे दौर भी गुज़रे हैं बारहा अपने चमन को आग लगाने चला था मैं ग़म और इतना ग़म कि सुकूँ नाम को नहीं और अपने दिल को उस पे हँसाने चला था मैं अल्लाह मेरे कुफ़्र-ए-मोहब्बत की ख़ैर हो बुत के क़दम पे सर को झुकाने चला था मैं बिजली चमक के मेरी नज़र से गुज़र गई 'अनवर' जब आशियाना बनाने चला था मैं