इश्क़ में इतना असर हो ये ज़रूरी तो नहीं उन को अब मेरी ख़बर हो ये ज़रूरी तो नहीं गामज़न हूँ मैं जहाँ जोश-ए-जुनूँ में ऐ दोस्त वो तिरी राहगुज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं अश्क भी मेरे जला सकते हैं दामन उन का सिर्फ़ आहों में असर हो ये ज़रूरी तो नहीं वक़्त आता है तो फूलों में बसर होती है उम्र काँटों पे बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं जान देना तो है आईन-ए-वफ़ा में लेकिन ज़ुल्म की तेग़ पे सर हो ये ज़रूरी तो नहीं वो तो आग़ोश-ए-तसव्वुर में भी आ सकता है हुस्न ख़ुद पेश-ए-नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं उन को पा सकते हैं जब ख़ाना-ए-दिल में 'अनवर' चाँद की सम्त सफ़र हो ये ज़रूरी तो नहीं