दिल से निकली हुई हर आह की तासीर में आ माँग ले रब से मुझे और मिरी तक़दीर में आ राब्ता मुझ से दिल-ओ-जाँ का अगर रखना है मुझ से वाबस्ता किसी हल्क़ा-ए-ज़ंजीर में आ मैं बनाता हूँ तख़य्युल के क़लम से पैकर मेरी तहरीर मिरे दर्द की तस्वीर में आ ये भी मुमकिन है कसाफ़त ही दिलों की धुल जाए मेरी आँखों से जो बहता है इसी नीर में आ ढल न जाए कहीं ये हुस्न-ए-सुख़न ऐ 'अनवर' दिल ये कहता है कि इस ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर में आ