दिल से तिरा ख़याल न जाए तो क्या करूँ मैं क्या करूँ कोई न बताए तो क्या करूँ उम्मीद-ए-दिल-नशीं सही दुनिया हसीं सही तेरे बग़ैर कुछ भी न भाए तो क्या करूँ दिल को ख़ुदा की याद तले भी दबा चुका कम-बख़्त फिर भी चैन न पाए तो क्या करूँ दिन हो कि रात एक मुलाक़ात की है बात इतनी सी बात भी न बन आए तो क्या करूँ जो कुछ बना दिया है तिरे इंतिज़ार ने! अब सोचता हूँ तू इधर आए तो क्या करूँ दीदा-वरान-ए-बुत-कदा इक मशवरा तो दो काबा झलक यहाँ भी दिखाए तो क्या करूँ अपनी नफ़ी तो फ़लसफ़ी-जी क़त्ल-ए-नफ़्स है कहिए कोई ये जुर्म सुझाए तो क्या करूँ ये हाए हाए मज़्हका-अंगेज़ है तो हो दिल से उठे ज़बान जलाए तो क्या करूँ मैं क्या करूँ मैं क्या करूँ गर्दान बन गई मैं क्या करूँ कोई न बताए तो क्या करूँ अख़बार से मिरी ख़बर-ए-मर्ग ऐ 'हफ़ीज़' मेरा ही दोस्त पढ़ के सुनाए तो क्या करूँ