दिल से वहशी को शादमान किया दीदा-ए-तर को दीद-बान किया हम-क़बीला हमारा था सुक़रात ज़हर उस ने भी नोश-ए-जान किया इश्क़ अपना उसी के नाम रहा हुस्न को साहब-ए-निशान किया हाँ सर-ए-बज़्म कुछ न बोले हम बज़्म उस की थी उस का मान किया उस की इतनी सी बे-रुख़ी पे 'ख़लील' हम ने क्या क्या न कुछ गुमान किया