दिल तड़पता है सुब्ह-ओ-शाम पड़ा या-इलाही ये किस से काम पड़ा ना-तवानी मदद करे अपनी तेरे दर पर रहूँ मुदाम पड़ा क़ाबिल-ए-बंदगी नहीं तो नहीं कब गले आ के ये ग़ुलाम पड़ा मय-कदा ख़ाली है न मय न मुग़ाँ ख़ुम-ओ-ख़ुम-रेज़ा है तमाम पड़ा क्या हुए रिंद जिन से रौनक़ थी ठोकरें खावे है ये जाम पड़ा कौन लेवे वो नाम 'फ़िद्वी' का अब तो सब के ये मुँह में नाम पड़ा