दिल तमाशा है तमाशा-गर नहीं है यार जी सो ज़बाँ भी चुप रहे बेहतर नहीं है यार जी हम जहाँ जिस बात पर मजबूर हैं आमीन है आप को अपने ख़ुदा का डर नहीं है यार जी दस्तकों के ख़ौफ़ तक तो बात आएगी नहीं हम हैं वो दीवार जिस का दर नहीं है यार जी एक मरकज़ आप हैं जिस का बने हम दायरा अपना कोई दूसरा महवर नहीं है यार जी रास्ते बे-सम्त हैं सो मंज़िलों की फ़िक्र कर कारवाँ का कोई भी रहबर नहीं है यार जी मुफ़लिसी में ख़्वाब हों तो ख़ाक अच्छी बात है देख कर है फ़ैसला सुन कर नहीं है हार जी इक ज़माना दो फ़रिश्ते लाख 'साहिब' साथ हों कम लगेगी कुल ख़ुदाई गर नहीं है यार जी