दिल तिरे हुस्न की किरनों को गिरफ़्तार करे रोज़ ता'मीर कोई नूर का मीनार करे मैं अब इस तरह गुज़रता हूँ गली से उस की जैसे अंधा कोई डर डर के सड़क पार करे मैं वो सूरज हूँ कि ज़ंजीर पिघल जाती है वो मुझे रेशमी धागों से गिरफ़्तार करे ख़्वाब की लाश पड़ी है न जनाज़ा न कफ़न दिल किसे फ़ोन करे और किसे तार करे