दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता-ए-जफ़ा पे कहीं अब करम भी गराँ न हो जाए तेरे बीमार का ख़ुदा-हाफ़िज़ नज़्र-ए-चारा-गराँ न हो जाए इश्क़ क्या क्या न आफ़तें ढाए हुस्न गर मेहरबाँ न हो जाए मय के आगे ग़मों का कोह-ए-गिराँ एक पल में धुआँ न हो जाए फिर 'मजाज़' इन दिनों ये ख़तरा है दिल हलाक-ए-बुताँ न हो जाए