संग-ए-बे-क़ीमत तराशा और जौहर कर दिया शम-ए-इल्म-ओ-आगही से दिल मुनव्वर कर दया फ़िक्र-ओ-फ़न तहज़ीब-ओ-हिकमत दी शुऊ'र-ओ-आगही गुम-शुदान-ए-राह को गोया कि रहबर कर दया चश्म-ए-फ़ैज़ और दस्त वो पारस-सिफ़त जब छू गए मुझ को मिट्टी से उठाया और फ़लक पर कर दिया दे जज़ा अल्लाह तू इस बाग़बान-ए-इल्म को जिस ने ग़ुंचों को खिलाया और गुल-ए-तर कर दिया ख़ाका-ए-तसवीर था मैं ख़ाली-अज़-रंग-ए-हयात यूँ सजाया आप ने मुझ को कि 'क़ैसर' कर दिया