दिल-नगर में भी आइए साहिब वर्ना आँखों से जाइए साहिब जी उठेंगे हज़ार-हा मंज़र सिर्फ़ पलकें उठाइए साहिब मैं गिरा तो ज़माना उट्ठेगा बात दिल में बिठाइए साहिब इस जगह टूट-फूट रहती है मेरे दिल में न आइए साहिब ख़ाक हैं आप की हथेली पर जैसे चाहे उड़ाइए साहिब मैं न बोला तो कौन बोलेगा आप ख़ुद ही बताइए साहिब हम से दुनिया तो रूठ बैठी है आप ही मान जाइए साहिब