दिलों में फूल खिलते जा रहे हैं मिरे क़ासिद बजा फ़रमा रहे हैं हमें तो और भी ग़म खा रहे हैं मुक़ाबिल आप भी धमका रहे हैं अकेले दूर जा कर रो लिए हम अकेले ख़ुद को ही बहला रहे हैं अब अपनी ज़िंदगी से तंग आकर हम अपनी मौत पर इतरा रहे हैं हमारा जिस्म है इक क़ब्र जैसा बहुत कुछ जिस में हम दफ़ना रहे हैं कोई अपना नहीं है यार 'सोहिल' हम अपने आप से बतला रहे हैं