दिन गुज़रता नहीं रात ढलती नहीं एक हसरत है दिल से निकलती नहीं रास्ता देखती हैं निगाहें तिरा इस तरफ़ दिल की हालत सँभलती नहीं ग़म हज़ारों हैं पर मुस्कुराती हूँ मैं क्या करूँ मेरी आदत बदलती नहीं मुद्दतें हो गईं अह्द-ए-ख़ामोश को आरज़ू कोई दिल में मचलती नहीं सब किताबों में महफ़ूज़ हैं आज तक मैं किसी फूल को भी मसलती नहीं बस यही एक 'ज़र्क़ा' में अच्छाई है कोई भी राज़ अपना उगलती नहीं