हर किसी में वफ़ा नहीं होती हर नज़र आइना नहीं होती दिल वो अनमोल शय है दुनिया में जिस की क़ीमत अदा नहीं होती निय्यतों में अगर हो खोट कोई कार-आमद दुआ नहीं होती जारी रहता है ये ज़माने में ज़ुल्म की इंतिहा नहीं होती कोई हमदम अगर मयस्सर हो ज़ीस्त बे-आसरा नहीं होती बस इसी बात का तो रोना है मुजरिमों को सज़ा नहीं होती ये है मेरा मुशाहिदा 'ज़र्क़ा' हर नज़र में हया नहीं होती