दिन के सीने पे रात का पत्थर किस के है इल्तिफ़ात का पत्थर रोक देता है बढ़ते क़दमों को हो के हाइल हयात का पत्थर संग-ए-बुनियाद है मोहब्बत का या मिरी काएनात का पत्थर मुझ को दुनिया ने आज़माया है फेंक कर हादसात का पत्थर टुकड़े टुकड़े सिफ़ात की मूरत रेज़ा रेज़ा है ज़ात का पत्थर है ये इमदाद-ए-बाहमी का भवन पाँच की ईंट सात का पत्थर क्या उठाएँगे ना-तवाँ काँधे दहर के इल्तिफ़ात का पत्थर हाथ आ जाओगे रंगे हाथों फेंक दो अपने हाथ का पत्थर होने वाला है नज़्र आँधी की इक न इक दिन हयात का पत्थर 'साज़' कुल वारदात कह देगा मौक़ा-ए-वारदात का पत्थर