दीवारों से बनती है कब दरवेशो आओ शहर से कूच करें अब दरवेशो आने वाला वक़्त बताएगा हम को किस रस्ते पर काटेंगे शब दरवेशो इस धरती का चेहरा ख़ून से लिथड़ा है तुम हरकत में आओगे कब दरवेशो मुझ को भी इक रम्ज़ इनायत हो जाए मेरे बारे भी सोचो अब दरवेशो मेरे घर में माँ की साँसें बस्ती हैं मेरे घर में रहता है रब दरवेशो उन के शहर में इक कुटिया की ख़्वाहिश है इतना सा मिल जाए मंसब दरवेशो अन्दर घोर अँधेरे 'आसिफ़' बस्ते हैं बाहर रौशन रौशन है सब दरवेशो