दिया नहीं है मुझे छुप-छुपा के रोने तक नज़र में उस ने रखे मेरे घर के कोने तक मैं क्या बताऊँ कि बीते हैं क्या कड़े मौसम शदीद कर्ब से गुज़रा हूँ संग होने तक वो रौशनी की तरह तेज़ तेज़ चलता है गुज़र न जाए कहीं आँख में समोने तक कोई करेगा नहीं देख-भाल फूलों की सब एहतिमाम-ए-बहाराँ है बीज बोने तक तबाह तो नहीं करता तमाम नींद मिरी मुझे ये दर्द जगाता है सिर्फ़ सोने तक कहाँ वो मस्लक-ए-पाकीज़गी रहा 'आसिम' है अब तो मश्क़-ए-वुज़ू दस्त-ओ-पा को धोने तक