मिलने का इम्कान बनाए बैठे हो किस को दिल और जान बनाए बैठे हो बरसीं आख़िर बारिश जैसे क्यों आँखें तुम बादल मेहमान बनाए बैठे हो दश्त की ख़ाक समेटी मैं ने पलकों से घर अपना दालान बनाए बैठे हो किस के आने की उम्मीद में आख़िर यूँ रस्ते को गुल-दान बनाए बैठे हो कौन किसी की याद भुलाई जाने को तुम आँगन शमशान बनाए बैठे हो क़स्में वा'दे झूटे जिस की ख़ातिर तुम दिल अपना वीरान बनाए बैठे हो तन्हा तन्हा रहते हो 'आसिम' 'तन्हा' ये कैसी पहचान बनाए बैठे हो