ख़याल-ओ-ख़्वाब से घर कब तलक सजाएँ हम है जी में अब तो कि जी ख़ुद से भी उठाएँ हम अजीब वहशतें हिस्से में अपने आई हैं कि तेरे घर भी पहुँच कर सकूँ न पाएँ हम अनीस-ए-जाँ तो हैं ये ख़ुश-क़दाँ चिनार मगर अदाएँ तेरी उन्हें किस तरह सिखाएँ हम वो घर तो जल भी चुका जिस में तुम ही तुम थे कभी अब उस की राख से दुनिया नई बसाएँ हम सुना रहे हैं दुखों की कहानियाँ कब से बस अब तो ध्यान की नद्दी में डूब जाएँ हम हर एक सम्त पहाड़ों का सिलसिला है यहाँ हमारा हाल है क्या ये किसे सुनाएँ हम