दुनिया में रह के दुनिया में शामिल नहीं हूँ मैं लगता है इस जहान के क़ाबिल नहीं हूँ मैं छींटे मिरी क़बा पे हैं मेरे ही ख़ून के मक़्तूल हूँ मैं दोस्तो क़ातिल नहीं हूँ मैं किस हक़ से रोक लूँ तुझे ओ जाने वाले मैं साथी तिरा सही तिरी मंज़िल नहीं हूँ मैं ख़ैरात जान कर मुझे देते हो दीद क्यों 'आशिक़ हूँ मैं जनाब का साइल नहीं हूँ मैं क़िस्मत में मेरी लिक्खी हैं दर-दर की ठोकरें गर्द-ए-सफ़र हूँ रौनक़-ए-महफ़िल नहीं हूँ मैं मिलना है ख़ाक में मुझे कहता है जिस्म ये देता है दिल सदा कि फ़क़त गुल नहीं हूँ मैं फ़िक्र-ए-सुख़न को छोड़ के आता है क्या मुझे हर-चंद इस हुनर में भी कामिल नहीं हूँ मैं यूँ तो कमी नहीं है किसी चीज़ की मुझे हरगिज़ तिरे बग़ैर मुकम्मल नहीं हूँ मैं अगला क़दम उठा तू 'सदा' दिल से पूछ कर अब 'अक़्ल की सलाह का क़ाइल नहीं हूँ मैं