दोस्तों की महफ़िल हो रेशमी उजाला हो सामने की बातें हों कोई सुनने वाला हो कोई मोजज़ाती सा एक दिल-रुबा लम्हा उस के होंट खुल जाएँ मेरे लब पे ताला हो ख़्वाब सारे तकिए पे चैन की हों सोते नींद 'मीर' जी के जैसा ही रोग हम ने पाला हो अपने लब पे छू छू के जाम लाए गर्दिश में ये मज़ा नशे वाला और भी दो-बाला हो आज बैरी मन चाहे कुंज एक ऐसा हो बाँसुरी की तानें हों और एक बाला हो 'राही' बे-वजह रंजिश ख़ैर हो भी सकता है इस गुदाज़ लम्हे को तुम ने भी सँभाला हो