दूजी वजह से दर वा नहीं है By Ghazal << एक दिन दिल जान से सब पर भ... दूजे जहाँ में मुब्तला रहत... >> दूजी वजह से दर वा नहीं है कोई हम से रूठा नहीं है सर को अपने क्या ढाँपे हम छत पर ही जब साया नहीं है मुझ को जाना तो जानोगे खोटा सिक्का खोटा नहीं है दस्तक दो हर दूजे घर पर हर घर का दर खुलता नहीं है चलते रहो तुम ये खुलने तक जो भी गया क्यों लौटा नहीं है Share on: