एक दिन दिल जान से सब पर भरोसा हो गया दुश्मनों के बीच मैं बिल्कुल निहत्था हो गया रौशनी ही रौशनी थी दूर तक देखो जहाँ तू गया क्या यार हर सू बस अंधेरा हो गया जा-ब-जा आती नज़र अब लाज लुटती प्रेम की क्यों हवस की आग में हर शख़्स अंधा हो गया चार दिन से बस उदासी बस उदासी साथ है यूँ समझ लो दोस्त से तुम यार झगड़ा हो गया एक पर वो किस तरह मौक़ूफ़ रहता साल भर चार दिन की चाँदनी में जो सभी का हो गया चारागर भी लग गए सब अपने दूजे काम से दीद से तेरी तिरा बीमार अच्छा हो गया