दुख दर्द ग़म हैं तेरी इनायात ज़िंदगी तू ने निभाईं ख़ूब रिवायात ज़िंदगी इक तू नियाज़-मंद सरापा मैं बे-नियाज़ मिलते नहीं हैं अपने ख़यालात ज़िंदगी फ़ितरत में आदमी के तग़य्युर नहीं मगर इंसान को बदलते हैं हालात ज़िंदगी मिलते रहे हैं सारे ज़माने से उम्र भर तुझ से न जाने कब हो मुलाक़ात ज़िंदगी दोनों के बीच कोई तअ'ल्लुक़ नहीं है ख़ास जीना है और चीज़ अलग बात ज़िंदगी आराम से गुज़ारती कुछ दिन हयात के सुनती कभी जो तू भी मिरी बात ज़िंदगी है मुस्तआ'र तार-ए-नफ़स से तिरा वजूद इस से ज़ियादा क्या तिरी औक़ात ज़िंदगी साँसों के वास्ते करे दस्त-ए-तलब दराज़ हर रोज़ मुझ से माँगे है ख़ैरात ज़िंदगी औरों के वास्ते है मुजस्सम तकल्लुफ़ात 'आकिब' तिरे लिए है ख़ुराफ़ात ज़िंदगी