दुखाती है दिल फिर मोहब्बत किसी की कि आँखों में फिरती है सूरत किसी की न पूछो ये हैं सिक्का-ए-दाग़ किस के ये दौलत मिली है बदौलत किसी की पुर-अरमान अहबाब दुनिया से उट्ठे फ़लक ने निकाली न हसरत किसी की ये आलम है अपना कि कहता है आलम इलाही न हो ऐसी हालत किसी की अजब बे-मुरव्वत से पाला पड़ा है कहाँ तक करे कोई मिन्नत किसी की उड़ा ले गई सर्व से क़ुमरियों को क़यामत है बूटा सी क़ामत किस की मैं इस दिल का साथी नहीं आशिक़ी में बला मेरी ले सर पर आफ़त किसी की नज़र में हैं यारान-ए-रफ़्ता के जलसे ख़ुश आती नहीं मुझ को सोहबत किसी की वो क्या दिन थे ऐ दिल तुझे याद है कुछ वो मेरी ख़ुशामद वो नख़वत किसी की बहुत बद है ऐ इश्क़ सरकार तेरे न इज़्ज़त किसी की न हुरमत किसी की शिकंजे में रहता है दिल आदमी का ख़ुदा बंद रक्खे न हाजत किसी की कहे मुझ को जो जिस का जी चाहे लेकिन कभी मुझ से होगी न ग़ीबत किसी की अबस 'बहर' मरते हो तुम हर किसी पर मुबारक नहीं तुम को चाहत किसी की