फल फेंक के हमसाए के घर तंग करेगा इक रोज़ ये आँगन का शजर तंग करेगा लगता था बिछड़ के मैं बहा लूँगी दो आँसू मा'लूम न था दीदा-ए-तर तंग करेगा हँस कर तुझे मिलती हूँ तो ये बात भी सुन ले मैं रो भी पड़ूँगी तो अगर तंग करेगा ख़ुश-फ़हमियाँ ता-उम्र नहीं साथ निभातीं इक रोज़ तुझे हुस्न-ए-नज़र तंग करेगा इस वास्ते तन्हा उसे जाने नहीं देती जुगनू को अँधेरों का सफ़र तंग करेगा कुछ रोज़ उसे देख के याद आएँगी चिड़ियाँ कुछ रोज़ ये टूटा हुआ पर तंग करेगा सब कहने की बातें हैं ये इख़्लास-ओ-मुरव्वत मत इस पे यक़ीं कर वो 'क़मर' तंग करेगा