दुनिया-ए-हक़ीक़त से वो बेगाना नहीं है दीवाना जिसे कहते हो दीवाना नहीं है लबरेज़ जुनूँ का अभी पैमाना नहीं है नज़रों से अयाँ लग़्ज़िश-ए-मस्ताना नहीं है बस हासिल-ए-कौनैन इसे याद है उन की मानूस-ए-दो-आलम दिल-ए-दीवाना नहीं है बिखरे हुए तारे हैं जिगर-चाक गुल-ए-तर क्या ये मिरी बर्बादी का अफ़्साना नहीं है इक पर्दा-ए-महबूब है इक राज़-ए-हक़ीक़त दीवाना किसी रंग से दीवाना नहीं है रहने दो हिजाब-ए-ग़म-ए-दिल में इसे पिन्हाँ इस बज़्म के क़ाबिल मिरा अफ़्साना नहीं है जो कैफ़-ए-अलम बारिश-ए-ग़म से हो गुरेज़ाँ जो दर्द से घबराए वो दीवाना नहीं है तरकीब बदल जाए तो हो जाए हक़ीक़त उन्वान बदल जाए तो अफ़्साना नहीं है है तुम से शिकायत का इरादा सर-ए-महफ़िल अंदाज़ मगर दिल का हरीफ़ाना नहीं है जो मुझ से गुनहगार को फ़िरदौस न बख़्शे ऐसी तो तिरी शान-ए-करीमाना नहीं है क्या हक़ है 'वकील' उस को मोहब्बत में जिए वो जो उन के लिए इश्क़ में दीवाना नहीं है