गर बे-नक़ाब आरिज़-ए-ताबाँ करे कोई ईमाँ को कुफ़्र कुफ़्र को ईमाँ करे कोई बिजली की ये चमक ये पपीहों की पी कहाँ उफ़ किस तरह बसर शब-ए-हिज्राँ करे कोई क़तरे को मौत आई जो दरिया से मिल गया अब क्या किसी के इश्क़ का अरमाँ करे कोई हम ख़ाक में मिले तो मिले लेकिन ऐ 'वफ़ा' क्या फ़ाएदा कि उन को पशेमाँ करे कोई अश्कों ने घर को ग़ैरत-ए-सहरा बना दिया अब क्यों जुनूँ में अज़्म-ए-बयाबाँ करे कोई उठते हुए शबाब की अंगड़ाई अल-अमाँ क्यों अब न चाक-चाक गरेबाँ करे कोई पहलू में जल्वा-गर है वो काफ़िर-अदा 'वली' किस तरह ज़ब्त शोरिश-ए-पिन्हाँ करे कोई