दुनिया के मसाइल से हर वक़्त घिरा होना मुश्किल तो बहुत होगा दुनिया का ख़ुदा होना उम्मीद के दामन को छोड़ा भी नहीं जाता लगता तो है ना-मुम्किन वा'दे का वफ़ा होना जितनी भी ख़ताएँ हैं या-रब हैं जवानी की जब बस में नहीं होता अच्छा कि बुरा होना दशरथ की तरह दुनिया छोड़ी भी नहीं जाती तकलीफ़ तो देता है अपनों से जुदा होना बेकार बनाता है बेहाल बनाता है इंसान का अपनी ही नज़रों से गिरा होना उम्मीद है उन को भी शायद मिरे आने की इतना तो बताना है दरवाज़े का वा होना होना तो ज़रूरी है हर रोज़ इबादत का अच्छा भी नहीं लगता हर रोज़ गिला होना क्या उन को सिखाएगा क्या उन को बनाएगा तलवारों के साए में बच्चों का बड़ा होना यारों की मोहब्बत है तेरा भी करम या-रब 'पर्वाज़' से इंसाँ को हर शय का मिला होना