दुनिया को रू-शनास-ए-हक़ीक़त न कर सके हम जितना चाहते थे मोहब्बत न कर सके सामान-ए-गुल-फ़रोशी-ए-राहत न कर सके राहत को हम शरीक-ए-मोहब्बत न कर सके यूँ कसरत-ए-जमाल ने लूटी मता-ए-दीद तसकीन-ए-तिश्ना-कामी-ए-हैरत न कर सके अब इश्क़-ए-खाम-कार ही अरमाँ को दे जवाब हम उन को बे-क़रार-ए-मोहब्बत न कर सके बे-मेहरियों से काम रहा गो तमाम-उम्र बे-मेहरियों को सहने की आदत न कर सके कुछ ऐसी इल्तिफ़ात-नुमा थी निगाह-ए-दोस्त होते रहे तबाह शिकायत न कर सके नाकामियाँ तो फ़र्ज़ अदा अपना कर गईं हम हैं कि ए'तिराफ़-ए-हज़ीमत न कर सके फ़ख़्र-ए-मुनासिबत में तिरा नाम ले लिया हम ख़ुद ही पर्दा-ए-दारी-ए-उलफ़त न कर सके हर-चंद हाल-ए-दीदा-ओ-दिल हम कहा किए तशरीह-ए-कैफ़ियात-ए-मोहब्बत न कर सके अफ़्लाक पर तो हम ने बनाईं हज़ार-हा ता'मीर कोई दहर में जन्नत न कर सके हमसाएगी-ए-ज़ाहिद-ए-बद-ख़ू के ख़ौफ़ से परवरदिगार तेरी इबादत न कर सके