दुनिया से बहर-हाल ये चर्चा नहीं करना क्या चाहिए करना मुझे और क्या नहीं करना ये दर्द तो बरसों की तमन्ना का सिला है ऐ मेरे मसीहा मुझे अच्छा नहीं करना कुछ सोच के ही तुम से बढ़ाई है इरादत अब कोई मुझे दूसरा क़िबला नहीं करना जो क़ैद परिंदों को करे डाल के दाना तुम उस की मोहब्बत पे भरोसा नहीं करना ख़्वाहिश है मिरा रक़्स-ए-जुनूँ देखे ज़माना और उस की है तंबीह तमाशा नहीं करना रातें न गुज़रने लगें बे-ख़्वाब तुम्हारी इतना भी मिरे बारे में सोचा नहीं करना सर दर्द मुझे अपना बढ़ाना नहीं 'अम्बर' अब कार-ए-मसीहा नहीं करना नहीं करना