दुनिया से बे-नियाज़ ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं क़ल्ब-ओ-जिगर नवाज़ ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं ऐ दिल ज़रा ठहर कि हैं सेहन-ए-चमन में वो महव-ए-ख़िराम-ए-नाज़ ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं छलके तिरे जमाल की रंगीनियाँ कुछ और इक ऐसी दिल-नवाज़ ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं करता हूँ बे-नक़ाब रुख़-ए-रौशन-ए-हयात पर्दा-कुशा-ए-राज़ ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं मस्ती में ताकि गुज़रे मेरी शाम-ए-ज़िंदगी ऐ मेरे कारसाज़ ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं इन नाज़ुक उँगलियों से ज़रा मुस्कुरा के छेड़ धीमे से कोई साज़ ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं साग़र-ब-दस्त आया है साक़ी बहार में बस हो चुकी नमाज़ ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं उस तीर-ए-नीम-कश का मज़ा हो मुझे अता ऐ चश्म-ए-नीम-बाज़ ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं तन्हाइयों में रात की याद-ए-'हबीब' ने छेड़ा है दिल का साज़ ग़ज़ल कह रहा हूँ मैं