फ़लक से हुए हैं ये पैहम इशारे ज़मीं से नहीं दूर ये चाँद तारे मुनव्वर हुई मेरी शाम-ए-ग़रीबाँ कि याद आ रहे हैं वतन के नज़ारे मिरी ज़िंदगी है कि है एक तूफ़ाँ ये बेचैन लहरें ये बेताब धारे तबीअ'त ने मेरी कभी भी न ढूँडे ये साहिल सफ़ीने वो साए सहारे उलझ सकता हूँ अब भी तूफ़ाँ से साथी ये क्यों मेरी कश्ती लगा दी किनारे ये हमवार-ओ-यकसाँ सी क्या ज़िंदगी है न आँधी न तूफ़ाँ न शो'ले शरारे कहीं छीन ले मुझ से पीरी न आ कर ये सीने की गर्मी नज़र के शरारे है बच्चों का इक खेल ये ज़िंदगी भी हसीं जो वो जीते हसीं वो जो हारे कभी प्यार करके कभी प्यार पा कर जिए हम जहाँ में उसी के सहारे ये पत्ते हैं लर्ज़ां वो गुल दम-ब-ख़ुद बस इक हम न समझें ख़िज़ाँ के इशारे 'हबीब' आप दुनियाँ को पहचानते हैं वो ये रंग बदले कि वो रूप धारे