दुनिया ये सही अदू बहुत है मेरे लिए एक तू बहुत है आबादी-ए-हम-ज़बाँ है लेकिन मुहताजी-ए-गुफ़्तुगू बहुत है इक हासिल-ए-जुस्तुजू में शायद ला-हासिल-ए-जुस्तुजू बहुत है आसाँ नहीं साथ उम्र भर का अंदेशा-ए-मन-व-तू बहुत है ऐसा है कि इन दिनों तुम्हारी तस्वीर से गुफ़्तुगू बहुत है छोड़ेगा वो ले के जान इक दिन इक दोस्त है सो अदू बहुत है जल उठती हैं शाम ही से शमएँ आँखों में मिरी लहू बहुत है दुनिया नहीं जानती 'सना' को रुस्वा सही सुर्ख़-रू बहुत हे