दूर पास हो कर भी आम ख़ास हो कर भी पूजते रहे पत्थर रब-शनास हो कर भी है क़ुबूल हर आमद आ उदास हो कर भी घोंसले नहीं बचते अब बे-मास हो कर भी ख़ुश्क हो नहीं सकते होंट प्यास हो कर भी ज़ख़्म छू नहीं पाई रुत कपास हो कर भी बद-गुमाँ नहीं 'सागर' बद-हवास हो कर भी