न यूँ बार-बार देखो मिरा दिल पिघल गया तो मैं कहाँ तलक सँभालूँ ये अगर मचल गया तो है ये मशवरा तुम्हारा कि मैं दिल पे जब्र कर लूँ क्या ये तुम भी सह सकोगे मैं अगर बदल गया तो या तो दोष मुझ को मत दो या नक़ाब ख़ुद उलट दो तपिश-ए-नज़र से मेरी जो नक़ाब जल गया तो कहो कब तलक कहोगे बे-ज़बाँ नहीं हूँ मैं भी क्या करोगे मेरे मुँह से कहीं कुछ निकल गया तो नहीं ख़ौफ़-ए-बर्क़ मुझ को कई फिर से बन सकेंगे कहीं साथ आशियाँ के ये चमन भी जल गया तो मेरे सब्र-ओ-दर-गुज़र को न समझना बुज़-दिली तुम ये तुम्हें पड़ेगा महँगा जो दिमाग़ चल गया तो किसी फ़ित्ना-गर का 'नजमी' है सुधार ग़ैर-मुमकिन इसे मो'जिज़ा ही कहना जो कोई सँभल गया तो