दूसरा ताज-महल कोई नहीं हाए इस दिल का बदल कोई नहीं तेरी तन्हाई का हल कोई नहीं ऐ मिरे दिल न मचल कोई नहीं फूल बुलबुल को तो गुल को शबनम और मिरे ग़म का बदल कोई नहीं अहद-ए-माज़ी के फ़सानों के सिवा अब यहाँ ताज़ा ग़ज़ल कोई नहीं एक से एक हसीं फूल खिले तेरे होंटों का बदल कोई नहीं ज़िंदगी है वो मुअ'म्मा जिस का लाख इशारे हैं हल कोई नहीं फूल हैं सेहन-ए-चमन में तो यहाँ आज सब लोग हैं कल कोई नहीं आज की रात जुदाई है 'अयाज़' आज की रात ग़ज़ल कोई नहीं